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Wednesday 25 January 2012

भरष्टाचार से परेशानी


 आज के आधुनिक युग में लोग यदि सबसे जायदा किसी चीज़ से परेशान और त्रस्त हैं तो वो है भरष्टाचार क्यूंकि  प्रत्येक कार्य के पीछे स्व समाज में अनैतिकता, अराजकता और स्वार्थ से युक्त भावनाओं का बोलबाला हो गया है। परिणामस्वरुप भारतीय संस्कृति और उसका पवित्र तथा नैतिक स्वरुप धुँधा हो गया है। इसका एक कारण समाज में फैल रहा भ्रष्टाचार भी है। भ्रष्टाचार के इस विकराल रुप को धारण करने का सबसे बड़ा कारण है, आज के अर्थप्रधान युग में प्रत्येक व्यक्ति धन प्राप्त करने में लगा हुआ है। कमरतोड़ महंगाई भी इसमें इजाफ़ा करने का काम कर रही है। मनुष्य की आवश्यकताएँ बढ़ जाने के कारण वह उन्हें पूरा करने के लिए मनचाहे तरीकों को अपना रहा है।
भारत के अंदर तो भ्रष्टाचार का फैलाव दिन-भर-दिन बढ़ रहा है। किसी भी क्षेत्र में चले जाएं भ्रष्टाचार का फैलाव दिखाई देता है। भारत के सरकारी व गैर-सरकारी विभाग इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण हैं। आप यहाँ से अपना कोई भी काम करवाना चाहते हैं, बिना रिश्वत खिलाए काम करवाना संभव नहीं है। मंत्री से लेकर संतरी तक को अपनी फाइल बढ़वाने के लिए पैसे का उपहार चढाना ही पड़ेगा। स्कूल व कॉलेज भी इस भ्रष्टाचार से अछूते नहीं है। बस इनके तरीके दूसरे हैं। गरीब परिवारों के बच्चों के लिए तो शिक्षा सरकारी स्कूलों व छोटे कॉलेजों तक सीमित होकर रह गई है। नामी स्कूलों में दाखिला कराना हो, तो डोनेशन के नाम पर मोटी रकम मांगी जाती है। बैंक जोकि हर देश की अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ हैं, वे भी भ्रष्टाचार के इस रोग से पीड़ित हैं। आप किसी प्रकार के लोन के लिए आवेदन करें पर बिना किसी परेशानी के फाइल निकल जाए, यह तो संभव नहीं हो सकता। देश की आंतरिक सुरक्षा का भार हमारे पुलिस विभाग पर होता है। परन्तु आए दिन यह समाचार आते-रहते हैं कि आमुक पुलिस अफ़सर ने रिश्वत लेकर एक गुनाहगार को छोड़ दिया। भारत को इस तरह का भ्रष्टाचार खोखला बना रहा है।
हमारे समाज में फन फैला रहे, इस विकराल नाग को मारना होगा। सबसे पहले आवश्यक है प्रत्येक व्यक्ति के मनोबल को ऊँचा उठाया जाए। प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए अपने को इस भ्रष्टाचार से बाहर निकालना होगा। यही नहीं शिक्षा में कुछ ऐसा अनिवार्य अंश जोड़ना होगा, जिससे हमारी नई पीढ़ी प्राचीन संस्कृति तथा नैतिक प्रतिमानों को संस्कार स्वरुप लेकर विकसित हो। न्यायिक व्यवस्था को कठोर करना होगा तथा सामान्य जन को आवश्यक सुविधाएँ भी सुलभ करानी होगी। इसी आधार पर आगे बढ़ना होगा, तभी इस स्थिति में कुछ सुधार की अपेक्षा की जा सकती है। लेकिन इस भरष्टाचार से कब तक इस देश की गरीब जनता को मुक्ति मिलेगी यह कहना मुश्किल है लेकिन भरष्टाचार को ख़तम करना बहुत ज़रूरी है 

Wednesday 9 November 2011

११ वर्ष का झारखण्ड

१५ नवम्बर २०११ को झारखण्ड  अपनी ११वी वर्षगांठ मानाने की तयारी कर रहा और इन वर्षों में इस प्रदेश ने कई लोकप्रियता पायी कभी धोनी और दीपिका कुमारी को लेकर खेल जगत में तो कभी घोटाले में फंसे पूर्व मंत्री और मुख्यमंत्री का मामला हो या  फिर  प्रेसिडेंट रुल और लगातार टलते जा रहे राष्ट्रीय खेल का आयोजन कर इस प्रदेश ने राष्ट्रीय  पटल पर लगातार सुर्खियाँ बटोरीं झारखंड बने  11  वर्ष हो गये, पर यह  प्रांत जितना भ्रष्टाचार के लिए जाना गया, उतना किसी भी चीज के लिए नहीं। भ्रष्टाचार और झारखंड एक दुसरे के पर्याय बन गएँ हैं । झारखंड अलग राज्य के निर्माण की लड़ाई की बात हो या झारखंड के विकास की बात, सभी स्तर पर यहां के राजनीतिज्ञों ने अपने आचरण में गिरावट ही दिखायी, आचरण में शुद्धता तो कहीं दिखी ही नहीं। जिसका खामियाजा आज भी झारखंड भुगत रहा है। और तो और अपनी ११ वर्ष की छोटी उम्र में दो बार राष्ट्रपति शासन भी झेल चुकी जो राज्य में राजनितिक अस्तिरथा को  बयान करता है  गर हम झारखंड निर्माण से पूर्व की बात करें तो पता चलता हैं कि झारखंड अलग राज्य के निर्माण की लड़ाई लड़नेवाले ज्यादातर नेता पदलोलुपता में आकर अपने जीवन भर की पूंजी व आंदोलन को कांग्रेस पार्टी के हाथों गिरवी रखा, या अपने पार्टी का विलय ही करा दिया, नतीजा न तो खुद रहे और न ही झारखंड आंदोलन की साख ही बची। ज्यादातर झारखंडी नेता व कार्यकर्ता एक नारा लगाते हैं कि कैसे लिया झारखंड, लड़ के लिए झारखंड। पर सच्चाई क्या हैं, जो लोग झारखंड के निर्माण के साक्षी है, जानते हैं। सच्चाई यहीं हैं कि -- भाजपा बिहार के कुछ पार्टस को अलग कर वनांचल प्रांत बनाने की मांग पर अडिग थी, ( जबकि झामुमो जैसी अनेक झारखंडी पार्टियां बंगाल, उड़ीसा और मध्यप्रदेश के कुछ पार्टस को भी इसमें मिलाकर झारखंड बनाने की मांग करती थी, जो संभव ही नहीं था) सन् 2000 में बिहार में राजद को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, जो कि झारखंड के निर्माण का कड़ा विरोध कर रही थी। लालू प्रसाद यादव भ्रष्टाचार के आरोप में इतने घिरे थे, कि किसी भी हालत में वे बिहार का शासन छोड़ना नहीं चाहते थे, इसलिए उन्होंने भी हामी भर दी और संयोग ऐसा हुआ कि झारखंड बन गया। इसे कोई जबर्दस्ती झूठलाने की कोशिश करें तो अलग बात हैं, और जब झारखंड बना तो क्या हुआ, स्थिति ऐसी हैं कि कोई भी झारखंडी खुद को झारखंडी कहलाने में गर्व महसूस नहीं करता। झारखंड एकमात्र प्रांत है – जहां निर्माण से लेकर आज तक, जितने भी मुख्यमंत्री हुए, सब के सब आदिवासी, जिनके बारे में कहा जाता हैं कि आदिवासी सरल, सहज और दिल के साफ होते हैं, पर इन मुख्यमंत्रियों के क्रियाकलापों पर नजर डाले, तो ये आदिवासियों को ही कटघरे में खड़ा कर देंगे, और लोगों की आदिवासियों के बारे में जो धारणाएं हैं, वो बदलती नजर आयेगी। सर्वप्रथम बिहार से अलग होने के बाद बने नवोदित झारखंड के मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की बात करें। इसमें कोई दो मत नहीं कि इस शख्स से राज्य को बेहतर दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, आधारभूत संरचनाओं को ठीक करने में समय लगाया, उर्जा, सड़क और शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित कर, राज्य ही नहीं पूरे देश में नाम कमाया और देश में सबसे अच्छा काम करनेवाले तीसरे मुख्यमंत्री के रुप में लोकप्रिय हो गये। राज्य में जितनी योजनाएं हैं, उन्हीं के समय की हैं, जिसे लेकर, लोग अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, चाहे वो बालिकाओं को स्कूल से जोड़ने के लिए साईकिल देने की बात हो, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना हो, या आदिवासियों के बेहतर विकास की बात हो, इन्हीं के समय में पूरे राज्य में सीबीएसई पैटर्न पर माध्यमिक शिक्षा को लागू किया गया, पर जदयू के उस समय के भ्रष्ट मंत्रियों ने इनकी एक न चलने दी और उर्जा तथा खनन मामलों में इन नेताओं ने बाबूलाल को ऐसी पटखनी दी, कि बेचारे कहीं के नहीं रहे, जिस अर्जुन को वे भरत मानकर अपना उतराधिकारी बना रहे थे, वो अर्जुन ही बाद में ऐसी पट्टी पढ़ाई की बेचारे भाजपा से अलग होकर आज खुद की नयीं पार्टी बना कर भाजपा के जड़े में मट्ठा डालकर भाजपा को समूल नष्ट करने पर तूले हैं, पर इसमें वे कितना सफल होंगे, समय बतायेगा, पर सच्चाई ये ही हैं कि यहीं से भ्रष्टाचार के वटवृक्ष का बीज झारखंड की राजधानी रांची में बोया गया, जो इस दस साल में एक विशाल वृक्ष बनकर सभी भ्रष्टाचारियों को आश्रय दे रहा हैं।
हम कहां की बात करें, कौन ऐसा क्षेत्र हैं, जहां भ्रष्टाचार नहीं हैं। सीबीआई की तो ज्यादातर कार्य झारखंड में ही हैं, लगता हैं कि सीबीआई का निर्माण हमारे पूर्व के राजनीतिज्ञों ने झारखंड को देखते हुए ही किया था। जरा देखिये लालू के चारा घोटाला की बात हो ४००० करोड़ रूपये के घोटाले के मामले में मधु कोड़ा से जुड़ा मामला सभी का केन्द्र बिन्दु झारखंड ही हैं जो झारखण्ड की धरती को धूमिल करती नज़र आ रही है   पर इनकी बात करने के पूर्व हम झारखंड के विधानसभा की बात कर लें तो ज्यादा बेहतर होगा। यहां अब तक जितने भी विधानसभाध्यक्ष हुए, अपने ढंग से नियुक्तियां की, और यहां पर नियुक्ति घोटाला हो गया, कौन सा मापदंड रखा गया, कैसे बहाली हुई, इस पर गर बात करें तो रामचरितमानस से भी बड़ा महाकाव्य तैयार हो जायेगा। आश्चर्य इस बात की हैं कि इसे लेकर किसी भी विधानसभाध्यक्ष ने अपनी गलती नहीं मानी हैं और न ही शर्मिदंगी दिखायी।

कमाल इस बात की हैं कि विधानसभा को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता हैं और इस मंदिर में आवश्यकता से अधिक अयोग्य लोगों की बहाली, वो भी अपने चहेतों को नौकरी दिलाकर विधानसभाध्यक्षों ने कर दी, क्या ये शर्मनाक नहीं।
कमाल हैं दस साल बने हो गये, झारखंड के इसी बीच सात सरकारें आयी और चली गयी, दो – दो बार राष्ट्रपति शासन लगा, आठवी सरकार भी कैसे बनी, इसको लेकर तरह तरह की अटकलें लगायी गयी हैं, कहनेवाले तो कह भी चुके हैं कि इस सरकार को बनाने में कारपोरेट जगत के लोगों ने रुचि ली हैं, जिसके एवज में इस सरकार ने उन्हें उपकृत करने की योजना पर काम भी शुरु कर दिया हैं। कमाल इस बात की भी कि राज्य को बने दस साल हुए और इससे ज्यादा बार विकास आयुक्त बदले जा चुके हैं, छह – छह बार पुलिस महानिदेशक और महाधिवक्ता का बदलाव हो चुका हैं, औसतन हर दस बाहर महीने में सचिवों का तबादला हो जाता हैं। भ्रष्टाचार का आलम तो ये हैं कि यहां स्थानांतरण उद्योग भी चलता हैं, और वसूली भी की जाती है।
भ्रष्टाचार का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता हैं कि इस राज्य का अपना विधानसभा भवन नहीं, सचिवालय नहीं, जबकि इन्हीं पर करीब दो सौ करोड़ रुपये अब तक खर्च हो चुके हैं। राष्ट्रीय खेल अब तक नहीं हो पाये है। इन मंत्रियों और अधिकारियों की करतूतों को देखिये अपने चहेतों को किस प्रकार झारखंड लोक सेवा आयोग के माध्यम सें शानदार नौकरियां दिलवा दी, ये अलग बात हैं कि पूरे मामले की जांच हो रही हैं, और कुछ लोग इस मामले में जेल की शोभा बढ़ा रहे हैं। यहीं नहीं शायद देश का ये पहला राज्य हैं जहां पर भ्रष्टाचार मामले में ही एक निर्दलीय व्यक्ति जो मुख्यमंत्री बना, अपने रिकार्ड भ्रष्टाचार के कारण, रांची और दिल्ली की जेलों में रहकर झारखंड की मान को गिरवी रख दिया है। यहीं नहीं इनके शासनकाल में ही मंत्री रहे, कई मंत्रियों पर सीबीआई की पकड़ हैं और ये भी फिलहाल विभिन्न जेलों में बंद रहकर अपनी जिंदगी को नारकीय बना रखा हैं। आश्चर्य इस बात की भी हैं कि भ्रष्टाचार के आरोप में बंद इन मंत्रियों और नेताओं के रिश्तेदारों को उनके दैनिक जीवन में कोई दिक्कत नहीं आ रही, बल्कि वे इसका फायदा भी उठा रहे हैं और विधानसभा तक पहुंच जा रहे हैं, यहीं नहीं जेल में रहकर ये लोकसभा के चुनाव तक जीते हैं, ऐसे में यहां की जनता की सोच पर स्वतः प्रश्न चिह्न लग जाता हैं कि क्या वो भ्रष्टाचार को सदाचार की ताबीज मान चुकी हैं, गर नहीं मानती तो भ्रष्टाचार मामलों में बंद ये नेता और उनके रिश्तेदार चुनाव में तो कम से कम नहीं ही जीतते, पर इनकी जीत बताती हैं कि जनता के सोच में भी बदलाव आया हैं और यहां की जनता फिलहाल भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा नहीं मानती, तभी तो सभी मस्त हैं नहीं तो भ्रष्टाचार पर आज तक अंकुश क्यों नहीं लगा, ये तो और पनपता जा रहा हैं, लेकिन वर्तमान में अन्ना के  भ्रष्टाचार विरोधी अभियान कहा तक कारगर साबित होती है / 

Sunday 23 October 2011

प्रमाण मांगता भारतीय महिला सशक्तिकरण


प्रमाण मांगता भारतीय  महिला सशक्तिकरण


इस वक़्त समूचा विश्व  तीन देवियों की तरफ इशारे  करने को आतुर नज़र आता है/ इस आतुरता में जो इशारे इन तीन देवियों की तरफ किये जा रहे है उन तीन देवियों ने आपने कार्यकाल में महिला सशक्तिकरण की ऐसी इबारत लिखी है जिसके फलस्वरूप विश्व प्रठेस्थित नोबेल पुरस्कार   से उन्हें नवाज़ा गया है/ 2011 के नोबेल शांति पुरस्कार  को लोकतान्त्रिक  मूल्यों  और महिला अधिकारों की  जीत बताया जा रहा है/ इस वर्ष  जिन तीन महिलाओं को संयुक्त रूप से नोबेल  शांति पुरस्कार से नवाज़ा गया है उनकी महिला अधिकारों और लोकतान्त्रिक आन्दोलन में अहेम भूमिका रही है/  इन तीनों महिलाओं के रिश्ते ऐसे देशों से है जो की  या तो खुद सशक्त नहीं हैं या महिलाओं के लिए माकूल नही है / अगर बात तीनो महिलाओं में से सबसे उम्रदराज महिला एलेन जोंसन सरलीफ की की जाये तो उनका 63  वर्षीय जीवन शंघर्ष बहुत कुछ  कहने और सुनने के लिए काफी है अपने जीवन संघर्ष की बदोलत ही सरलीफ को किसी भी अफ्रीकी देश की पहली महिला राष्ट्रपति बन्ने का गौरव हासिल है /सरलीफ ने अपने जीवन को मजबूत बनाकर जो वैश्विक प्रमाण दिए हैं जिसे 14 वर्ष तक चले भीषण गृहयुद्ध  को समाप्त कर देश की अर्थवयवस्था को नए आयाम देने जैसे प्रयास अन्य महिलाओं के लिए आदर्श साबित हुए हैं वहीँ लाइबेरिया की ही लीमाह बोवी जिन्हें संयुक्त रूप से पुरस्कार से नवाज़ा गया है  उन्होंने महिलाओं के लिए जो क्रय किये हैं वह वाकई में काबिले तारीफ़ है /  बोवी ने जिस प्रकार गृहयुद्ध के दौरान लाइबेरिया में देश की महिलाओं को शांति स्थापना के लिए एक मंच पर ला खड़ा किया / राष्ट्रपति भवन के सामने शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर गृहयुद्ध के खात्मे की नीव राखी उससे छोटे शब्दों ,में  बताना समझ नहीं आता /
२०११ में तीसरा संयुक्त रूप से शांति नोवेल पुरस्कार ऐसे सदस्य देश की महिला को मिला है  जो देश की महिलाओं के लिए माकूल नहीं समझा जाता है  यमन की तवक्कुल  अरब देश की पहली महिला नोवेल विजेता बनी हैं पेशे  से पत्रकार , मानवाधिकार कार्यकर्ता ने तुनिशिया और मिस्त्र की जनक्रांति से प्रभावित होकर यमन के वज़ीरे आला अली अब्दुल्ला सालेह को पद से हटाने के लिए पिछले कई महीनों से शांतिपूर्ण प्रदर्शन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया  उसने अरब देश की महिलाओं के लिए आदर्श और जनांदोलन के लिए एक कारगर कदम समझा जा रहा है बात अगर भारत की जाये तो भारत में महिलाओं का एक बहुत बड़ा हिस्सा अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा है / रूढ़ीवादी मानसिकता के कारण अपने ही परिवार में महिलाओं की स्थिति चिंताजनक है ऐसा नहीं है की भारतीय महिला सशक्त नहीं है अगर बात भारतीय महिलों की हो तो सिलसिला दूर तक जाकर भी रुकने का नाम नहीं लेता/ इस तर्क को  बिहार की उन दो ग्रामीण दलित महिलाओं से समझा जा सकता है जिन्हें  सन 2006 में  नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था जिनमे बिहार के मधुबनी जिले के तख्नैर खैरी गाँव निवासी तीलिया देवी और अमरीका देवी  हैं जो लोकशक्ति संघटन से जुडी हुई हैं जिसमे दोनों ने अपने समुदाय के जीवन स्तर को सूधारने के लिए कई सराहनीय कार्य किये हैं इसी  क्रम में कई ऐसी महिलाए भी हैं जो गुमनामी के अंधेरों में है लेकिन आज की महिलाओं का लोहा भारत समेत पूरा विश्व मान चूका है जिसमे भारत की प्रथम नागरिक और भारत की पहली महिला राष्ट्रपति  प्रतिभा पाटिल हैं/ साधारण परिवार की साधारण से खास बनी ममता बनर्जी भी हैं जिन्होंने 35 वर्ष के कोमुनिस्ट सत्ता को उखाड़  फेंका  जिसके उखड़ने से कांग्रेस जैसी पार्टी  बंगाल में गर्त में चली गयी थी ये ममता ही हैं जो अब पुरे बंगाल की दीदी बन चुकी हैं और पार्टी को फिर से अपनी साख मिली है /
मायावती ,सोनिया गाँधी ,मेधा पाटकर , चंदा कोचर .किरण बेदी आदि कई ऐसी महिलायें हैं जो सशक्त भारतीय महिलाओं का आदर्श के पात्र हैं / सरकार जिस प्रकार अपने आंकड़े और प्रयासों का अम्बर बनती जा रही है अब वही आंकड़े और प्रयास प्रमाण मान रहे है और इस प्रमाण को देने के लिए अब महिलाओं को खुद सशक्त बनकर आगे आने होगा/